Wednesday, June 20, 2012

हजारों ख्वाहिशे ऐसी...(Hazaron Khwahishein Aisi)




ज़िंदगी के सफर में,
उम्र के हर पड़ाव पर,
जब सोंच के परिंदोंने ली उड़ान,
जन्मी हजारों ख्वाहिशे ऐसी, 
न जाने कैसी कैसी, मानो हसीन सपनो जैसी...

जो कभी तन्हा बैठे अकेले में,
सोचते हम अक्सर यू ही कभी,
की ये जो सारे सपने है,
जिस तरह से संभाले हमने है,
बरसातें दिलों में जो सावन है,
और हमारे दिल के अपने है,
आंखोंमें जिनहे सँजोया है,
प्यार से जिसे सजाया है
तकिये से लेके सोये है,
और सू भी बन के बहे है,
वक़्त रहते इस जीवन में,
क्या पूरे होंगे भी ये कभी ?

जब ख़्वाहिशों को पाने की छाह में,
एक कोशिश मन में ठान ली,
परवाह करे क्यो उस वक़्त की ?  
लुफ्त उठाये बस चल दिये,
उस जीने की चाह में,
हजारों ख्वाहिशे ऐसी,
न जाने कैसी कैसी, मानो हसीन सपनो जैसी...

4 comments:

  1. jindagi khatma hojati hai, khwaishe nahi

    ReplyDelete
  2. Hello Jigar....rightly said....but this is what ignites the hope to live a life :-)

    ReplyDelete