हमारी आंखो का तारा,
दुलारा हो गया सयाना,
माना नहीं आज तुझे जरुरत,
चल्ने को हमारि ऊंग्ली का सहारा,
और शायद ही याद हो तुझे,
मॉ ने हाँथोसे खिलया प्यार भरा निवाला,
निकला अप्ने पंख पसारे,
ऊड्ता घरसे दूर देस चला,
ओ नादान परिंदे घर आजा,
क्यों अपना देश छोड कहि और बसेरा ??
कहॉ देस बिदेस फिरे मारा,
क्यों खुद युहि थका हारा,
ऐसे सब कुछ छोड चला,
डॅल्लर कमाने कि चाह मैं,
क्यो रिश्तोंको तु बिखेर चला,
खूब रफ्तार से तु दौड रहा,
फंसला दर्मियान और बढा रहा,
शयाद हम्से ना हो पायेगा,
तेरि गती को अब पेह्लेसा नाप्ना,
उमर के इस आखरी पडाव पर,
खुद ही खुद से अंगिनत हम सवाल कर,
पीछे मुड के तु कभी देख पयेगा ?
हमारी फिकर से परेशान, तु कभी दौड अयेगा ?
क्या कभी हमरा सहारा बन पयेगा ?
या हमै ऐसे ही भुल जयेगा ?
कितनि भी भर ले उंचि ऊडान ,
तेरि फिकर से मन ये हमेशा परेशान,
तेरि वपसि का करेंगे इंत्जार,
ओ नादान परिंदे घर आजा,
कयो अप्नोंको छोड, कही और बसेरा ??
अभी भी देर नहि हुइ, अब तो घर आजा !! ( My tribute to those Parents, who are left by themselves by their NRI kids )
This is thought provoking... Been there, seen that!
ReplyDeleteYes Saru....this is a dilema for the Parents as well as the kids
ReplyDeleteThis post has been selected for the Spicy Saturday Picks this week. Thank You for an amazing post! Cheers! Keep Blogging :)
ReplyDeleteThank you BlogAdda...this is wonderful !
ReplyDeleteI am extremely impressed along with your writing abilities, Thanks for this great share.
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